Thursday 7 July 2016

माननीय रविश कुमार !
मैं आपको माननीय कह के बुला रहा हूँ वर्ना आप जानते हैं दुनिया आपको "रंडी रोना पत्रकार" के नाम से बुलाती है !
आपको लोग क्यों "दलाल" कहते हैं, आपको इस बात पे दुःख है ! आइये मैं आपको बताने समझाने की कोशिश करता हूँ की लोग ऐसा क्यों कहते हैं ?

याद है रविश जी, जब अख़लाक़ की हत्या हो गयी भीड़ के द्वारा, आप कैमरा और सत्तू की पोटली लेके दादरी में जम गए थे और हिन्दुओं को ऐसी पाश्विक शक्ति घोषित करने में पूरा जोर लगा दिया था जिससे शायद पृथ्वी को ही नहीं पूरा ब्रह्माण्ड को खतरा है !
चलो ! वक्त की मांग थी, बिहार में चुनाव थे, आपके बड़े भाई भी चुनाव लड़ रहे थे ! चलता है ! अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है ! मगर जब अख़लाक़ के परिवार ने सीबीआई की जांच से मना कर दिया, तब आपको शक क्यों नहीं हुआ ? आखिर वो बहुत पीड़ित थे, सीबीआई जांच का तो खैर मकदम होना चाहिए था ! चलिए ये भी छोडिए, जब लैब रिपोर्ट आई के फ्रीज़ में रख मांस गौ मांस ही था तब आप टी वी में अँधेरा करके क्यों नही बैठे ? आखिर ये तो उस बात की तस्दीक थी की गौ मांस था और ये उस बात के पूरा विपरीत था जब आपने उंगलियां नचा नचा के प्राइम टाइम पे कहा था की मांस बकरे का था और गाय का नहीं ! क्या एक माफ़ी या खेद नहीं बनता था आपकी तरफ से !

अब याद कीजिये JNU का वो वाक्या ! वीडियो आये के इंडिया के टुकड़े के नारे लगे हैं ! आप रोड पे आ गए ! पत्रकारिता की स्वतंत्रता पे खतरा है ! क्या जरूरी था उसी समय एक नया जंजाल खड़ा करने का जब देश असली गद्दारों को पहचान रहा था ! आपने देर नहीं की बताने में की वीडियो फ़र्ज़ी हैं ! कमाल का कॉन्फिडेंस दिखा आपके चेहरे पे वीडियो फ़र्ज़ी बताते वक्त जैसे की आप बचपन से बेगूसराय में वीडियो एडिटिंग करते रहे थे शादियों में ! स्क्रीन पे अँधेरा करके देश के आँखों पे पट्टी बांधनी चाहि ताकि जनता को सच ना पता चले ! चलिए, वक़्त की मांग थी ! मगर जब लैब से रिपोर्ट आ गयी की वीडियो सच्चे थे, एक माफ़ी बनती रविश जी, एक उजाला बनता था टी वी स्क्रीन पे !

सबसे ज्यादा दया और गुस्सा इस बात पे आया जब आपने JNU में जा के बड़े ही काईंया अंदाज़ में कहा की केमस्ट्री वेमेस्ट्री क्या होता है आपको नहीं पता ! सर, विज्ञानं ही दुनिया चलाती है ये बताने की जरूरत है क्या ? सिर्फ राजनितिक शास्त्र पढ़ के किस देश का भला हुआ है ? और डफली बजाने वालो को बहुत काम करने वाला बताने से पहले सोचा होता सर क्या आप अपने बच्चे को कॉलेज में पढ़ाई लिखाई छोड़ के डफली बजाने देंगे ?

कभी कुछ पहले "दलित फूड्स" के मुद्दे पे चर्चा पे आपका उची जाती का घमंड सामने आया जब आप बोल गए की " हम भी खाते हैं आप भी खाते फिर दलित फूड्स में क्या ख़ास बात है ?" सामने बैठा हुआ एक दलित व्यापारी था ? तो आपका "हम" से क्या मतलब था ? क्या आप अभी ऊँची जाती की शान बघार रहे थे ? सर, मनोविज्ञान शास्त्र बहुत ही आसान सा विषय है ! और सिर्फ आप ही नहीं, हम भी उसकी समझ रखते हैं !

रही बात के आपकी माँ को रंडी बोला गया तो भाई, माँ की इज़्ज़त सबसे पहले उसके अपने बेटे के हाथ में होती है बाद में किसी और की !  अपने ट्वीट और यू tube के वीडियो पे कमेंट देखिये, एक ख़ास किस्म के लोग जिन्हे हम शांतिप्रिय कहते हैं, वही आपके सही चाहने वाले हैं क्युकी आप जात वाली बातें रस लेके करते हैं ! अब ऐसे लोगो को "दलाल " ना कहें तो कोई अच्छी सा टर्म बता दीजिये क्युकी पत्रकार तो नहीं हैं सर !

कुछ महीनों पहले आप हरियाणा में सरस्वती नदी की उद्गम की खोज करने गए थे वही कैमरा, सत्तू को पोटली और बहुत सारा संदेह ले के ! आपके  सवालों का टोन देख के लगा के आप पहले से नहीं मान के गए थे की नदी का अस्तित्व वहां नहीं है और सब झूठी बातें हैं ! आप को पुरातत्व ग्यानी तो है नहीं वैसे "शांतिप्रिय" आपको बहुत कुछ समझते हैं ! क्या किसी मज़ार के पास ऐसा पूर्वाग्रह ले के जाएंगे रविश जी ?

बिहार के चुनाव से ठीक पहले आपकी सक्रियता बिलकुल गर्म पानी में उबलते अंडे जैसी दिखती थी ! अब चुनाव के बाद बारहवीं टोपर का मुद्दा सामने आया, बिहार इस इतनी हंसी उडी रविश जी, एक दिन स्क्रीन का आधा भाग भी काला क्या मटमैला भी ना किया ? क्यों भाई ? समाजवाद का इतना चस्का तो किसी युवा को ना होगा जितना आपको है !

अच्छा होगा रविश भाई की आप कोई पार्टी ज्वाइन कर लें , आप रिपोर्टर कम और पार्टी के स्पोक्स पर्सन ज्यादा लगते हैं ! और एक बात और आखिर, जो लॉजिक आप प्राइम टाइम पे उंगलियां नचा नचा के देते हैं, वो बिहार के छुटभैया लौंडे पान , चाय की दूकान में थोक के भाव सुबह शाम देते हैं ! बिहार कहीं नहीं पहुंचा इस लॉजिक से , आप दिल्ली पहुँच गए सूट पहन के ! रहने दीजिये रविश जी, हम भी बिहारी है, हर नस पहचानते हैं !